सबके प्रति आदर भाव
आज सुबह भूल से मैंने उस दरी को ठोकर मार दी जिस पर मैं सोता हूं, तो मैंने उसके पैर पड़े, वैसे ही जैसे बचपन में किसी किताब के ज़मीन पर गिर जाने या उसे ठोकर लग जाने पर पड़ते थे। बचपन में यह यंत्रवत कर लेते थे। बड़े हुए, तो यह बचकाना लगा, इसलिए छोड़ दिया।

और बड़े हुए, तो समझ आया कि यह बचकानापन नहीं, बल्कि वस्तुओं का आदर करना है। जैसे व्यक्तियों का आदर किया जाता है वैसे ही हर वो वस्तु जो हमें किसी भी रूप में सुख/सुविधा/ज्ञान प्रदान करती है उसके प्रति हमें धन्यवाद अवश्य व्यक्त करना चाहिए।

मेरा अनुभव है कि जब हम ऐसा करते हैं तो वस्तुएं भी हमारे प्रति प्रेम और धन्यवाद व्यक्त करती हैं, हमें परेशान नहीं करती, और लंबे समय तक हमारे साथ रूकती हैं।